K. Natwar Singh : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री के. नटवर सिंह का शनिवार रात को लंबी बीमारी के बाद 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। एक प्रतिष्ठित राजनयिक से एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति बनने तक के सिंह के सफर में भारत की विदेश नीति और शासन में उनके कई योगदानों की झलक मिलती है।
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प्रारंभिक जीवन और राजनयिक कैरियर
- जन्म और शिक्षा: 1931 में राजस्थान के भरतपुर में जन्मे नटवर सिंह एक अकादमिक उपलब्धि वाले व्यक्ति थे। उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में इतिहास का अध्ययन किया और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, यूके और पेकिंग विश्वविद्यालय, चीन में अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया।
- राजनयिक सेवा: सिंह 1953 में 22 वर्ष की छोटी उम्र में भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में शामिल हुए। उनके राजनयिक करियर में निम्नलिखित पद शामिल थे:
- यू.के. में उप उच्चायुक्त (1973-1977)
- जाम्बिया में उच्चायुक्त (1977)
- पाकिस्तान में राजदूत (1980-1982)
राजनीति
- राजनीतिक प्रवेश:
सिंह ने 1984 में कूटनीति से राजनीति में प्रवेश किया, वे राजस्थान के भरतपुर से संसद सदस्य चुने गए। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उनके व्यापक अनुभव को देखते हुए राजनीति में उनका कदम महत्वपूर्ण था।
- मंत्री पद की भूमिकाएँ:
- विदेश मंत्री (2004-2005): प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट में नियुक्त।
- केंद्रीय इस्पात, खान और कोयला तथा कृषि राज्य मंत्री (1985-1986): राजीव गांधी की सरकार में सेवा की।
- विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री (1986-1989): राजीव गांधी के अधीन अपनी सेवा जारी रखी।
योगदान और विवाद
- प्रमुख योगदान:
- विदेश मंत्री के रूप में सिंह का कार्यकाल भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण कूटनीतिक जुड़ाव और योगदान के लिए जाना जाता है।
- राष्ट्र के प्रति उनकी सेवाओं के लिए 1984 में पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
- विवाद:
- 2006 में, तेल के बदले खाद्यान्न घोटाले की जांच के बाद सिंह ने विदेश मंत्री के रूप में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हें फंसाया गया था, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा करते हुए कहा कि उन्हें किसी भी अवैध भुगतान से व्यक्तिगत रूप से कोई लाभ नहीं हुआ।
बाद का जीवन और विरासत
- सत्ता में वापसी: थोड़े अंतराल के बाद, सिंह 2002 में राज्यसभा के लिए चुने गए और फिर से विदेश मंत्री के रूप में सेवा करके राजनीति में लौट आए।
- आत्मकथा और सार्वजनिक वक्तव्य: सिंह अपने स्पष्ट विचारों के लिए जाने जाते थे, अक्सर कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह के खिलाफ बोलते थे। 2014 में प्रकाशित उनकी आत्मकथा, "वन लाइफ इज़ नॉट इनफ" में प्रमुख हस्तियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत का खुलासा किया गया, जिसने सार्वजनिक बहस को जन्म दिया।
संवेदना और श्रद्धांजलि
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: कूटनीति और विदेश नीति में सिंह के योगदान को स्वीकार करते हुए अपनी संवेदना व्यक्त की।
- राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा: भारतीय राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर सिंह के प्रभाव को उजागर करते हुए उन्होंने भी अपना दुख व्यक्त किया।
के. नटवर सिंह के करियर में प्रमुख मील के पत्थर
वर्ष |
पद |
महत्वपूर्ण योगदान |
1953 |
आईएफएस में शामिल हुए |
एक प्रतिष्ठित राजनयिक करियर की शुरुआत की |
1973-1977 |
यूके में उप उच्चायुक्त |
भारत-यूके संबंधों को मजबूत किया |
1984 |
भरतपुर से सांसद चुने गए |
कूटनीति से राजनीति में आए |
1985-1986 |
केंद्रीय इस्पात, खान और कोयला राज्य मंत्री |
राष्ट्रीय औद्योगिक नीति में योगदान दिया |
2004-2005 |
विदेश मंत्री |
मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान भारत के विदेशी संबंधों का नेतृत्व किया |
2006 |
विदेश मंत्री के पद से इस्तीफा दिया |
तेल के बदले खाद्यान्न घोटाले के विवाद के बीच |
निष्कर्ष :
के. नटवर सिंह का निधन भारतीय राजनीति और कूटनीति में एक युग का अंत है। उनके जीवन का कार्य, उल्लेखनीय योगदान, विवादों और भारत की विदेश नीति पर गहरे प्रभाव से भरा हुआ है, जो एक स्थायी विरासत छोड़ता है। जबकि राष्ट्र उनके नुकसान पर शोक मना रहा है, उनकी जीवन यात्रा राजनयिकों और राजनेताओं की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है।